हाल ही में तेलंगाना से बेहद बुरी खबर सुनने को आई है, खबर ये है कि यहां के 12वीं के रिजल्ट आने के बाद से अब तक 22 छात्रों ने आत्महत्या कर ली है और ये सब कुछ हुआ है दोषपूर्ण मूल्यांकन प्रणाली और सॉफ्टवेयर की खराबी से। इस खबर में एक खास बात ये भी है कि मरने वाले छात्रों में से अधिकांश पढ़ाई में बेहद मेधावी और10 क्लास के टॉपर रहे हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि छात्रों पर रिजल्ट का फोबिया किस कदर हावी होता है कि वो उन्हें खुद पर ही विश्वास नहीं होता और वो इस तरह के कदम उठा लेते हैं।
अब सवाल ये भी है कि आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है, दरअसल इसके लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था से लेकर हम खुद भी काफी हद तक जिम्मेदरा हैं। क्योंकि स्कूल से लेकर घर-परिवार के लोग द्वारा परिक्षा में बेहतर मार्क्स लाने के छात्रों पर काफी दबाव बनाया जाता है। ऐसे में कई बार छात्रों पर रिजल्ट में बेहतर प्रदर्शन का प्रेशर इतना बढ़ जाता है, अगर उम्मीद से जरा भी कम मार्क्स आए तो छात्रों का मनोबल डगमगा जाता है और वो दुनिया के डर से ऐसे आत्मघाती कदम उठा बैठते हैं।
ऐसे में अगर हम इस तरह की घटनाएं नहीं चाहते हैं तो सबसे पहले छात्रों के मन से रिजल्ट का फोबिया दूर करना होगा। इसके लिए टीचर्स से लेकर पैरेंट्स को अपनी भूमिका समझनी होगी।
टीचर्स ही होते हैं जो स्टूडेंट्स का क्षमता का आकंलन कर पाते हैं, टीर्चस को चाहिए कि वो अपने छात्रों के मन से एग्जाम और रिजल्ट का भय दूर कर उन्हे नॉलेज बढ़ाने और सीखने की स्किल पर जोर दें। ना कि सिर्फ एग्जाम में बेहतर परफॉर्म करने के लिए मजबूर करें।
वहीं पैरेंट्स को भी चाहिए कि वो बच्चों पर अच्छे मार्क्स के लिए अत्यधिक दबाव ना बनाएं। क्योंकि सिर्फ मार्क्स के आधार पर ही किसी बच्चे की प्रतिभा और क्षमता का आंकलन नहीं किया जा सकता है। इसका सबसे उदाहरम है तेलंगाना में हुई घटना। क्योंकि यहां सॉफ्टवेयर की चूक से छात्रों के रिजल्ट बदल गए और जिन बच्चों के रिजल्ट में 90% मार्क्स आने थें उन्हे भी जीरो ही मिला। ऐसे में आप रिजल्ट के आधार पर बच्ते की क्षमता का आंकलन कैसे लगा सकते हैं।